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आँसुओं को स्याही बनाकर गज़ल लिखता हूँ मैं धुआँ-धुआँ है ज़िन्दगी और अदल लिखता हूँ मैं मेरी तक़दीर में शायद कुछ भी नही है...ऐ दोस्त तेरी दुआओं के सहारे अपना कल लिखता हूँ मैं कहीं तेरे दामन पर लग ना जाए दाग़ बेवफ़ा
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